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Wednesday, March 27, 2013

तब फागुन ,फागुन लगता था


तब फागुन ,फागुन लगता था

चौपाल  फाग   से  सजते  थे
नित ढोल -नंगाड़े बजते थे
तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.

तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.
  
गाँव में बरगद-- पीपल था
और आस-पास में जंगल था
मेड़ों पर खिलता था टेसू
और पगडण्डी में सेमल था.

तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.


अंतस में प्रेम की चिंगारी
हाथों में बाँस की पिचकारी
थे पिचकारी में रंग भरे
और रंगों में गंगा-जल था.

तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.

हर टोली अपनी मस्ती में
थी धूम मचाती बस्ती में
न झगड़ा था,न झंझट थी
और न आपस में दंगल था.

तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.

कोई देवर संग,कोई साली संग
कोई अपनी घरवाली संग
थे रंग खेलते नेह भरे
हर रिश्ता कितना उज्जवल था.

तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.

हर घर खुशबू पकवानों की
दावत होती मेहमानों की
तब प्रेम-रंग से रँगा हुआ
जीवन का मानो हर पल था.

तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.


अब प्रेम कहाँ,अब रंग कहाँ
वह निश्छल,निर्मल संग कहाँ
इस युग की होली "आया - सी "
वह युग ममता का आँचल था .
तब फागुन ,फागुन लगता था
यह मौसम कितना चंचल था.


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

Monday, March 25, 2013

रात रात भर चिट्ठी लिखना


छंद कुण्डलिया : चिट्ठी
(1)
बीते दिन वो सुनहरे  नैन  ताकते द्वार
कब आएगा डाकिया  , लेकर चिट्ठी- तार
लेकर चिट्ठी -तार , डाकखाने के चक्कर
पत्र कभी नमकीन,कभी ले आते शक्कर
सीने से लिपटाय ,  खतों को लेकर जीते
नैन ताकते द्वार   सुनहरे वो दिन बीते ||

(2)
सोना  चाँवल   चिट्ठियाँ  ,   जितने  हों  प्राचीन
उतने   होते   कीमती   ,   और   लगें नमकीन
और   लगें    नमकीन   भुला दें  टूजी  थ्रीजी
चिट्ठी    की   तासीर  ,  मिले     कैसे    भाई जी
ठीक नई तकनीक,किंतु मत कल को खोना
बिना कल्पना-स्वप्न  ,भला क्या होता सोना ?

(3)
लिखना  भी  दुश्वार था  -"मुझको तुमसे प्यार"
अब  तो  सीधे  हो  रहा  ,  जता-जता कर प्यार
जता-जता कर  प्यार , आज उससे कल इससे
पहले   सालोंसाल   ,   बना    करते  थे  किस्से
सौ सुख देता एक झलक सजनी का दिखना
डूब   कल्पना   रात रात   भर   चिट्ठी  लिखना ||


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

Thursday, March 21, 2013

आज विश्व कविता दिवस (वर्ड पोयट्री डे) : 21 मार्च पर


कविता 

नहीं बनाई जा सके कविता खुद बन जाय
कागज पर उतरे नहीं , मन से मन तक जाय
मन से मन तक जाय , वही कविता कहलाये
अनायास  उत्पन्न  ह्र्दय  का   हाल बताये 
युग - परिवर्तन करे  सत्य शाश्वत सच्चाई
कविता खुद बन जाय , जा सके नहीं बनाई  ||


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

Wednesday, March 20, 2013

जल है तो कल है....



(चित्र गूगल से साभार)
 
छंद मरहठा – 10, 8, 11 मात्राओं पर यति देकर कुल 29 मात्रायें | अंत में गुरु, लघु |

जल मलिन न करियो, सदा सुमरियो, बात लीजियो मान |
यह  है गंगाजल  ,  रखियो निर्मल  ,  इसमें  जग के  प्रान ||

जल  है  तो कल है , यदि निर्मल है , इसे अमिय सम जान |
अनमोल  धरोहर  ,  इसमें   ईश्वर  ,  यह   है   ब्रह्म समान ||

अपशिष्ट   बहा  मत व्यर्थ गँवा मत , सँभल अरे नादान |
तेरी     नादानी    ,    मूरख    प्रानी    ,   भुगतेगी  संतान ||

जल  संरक्षित  कर  ,  वृक्ष लगा घर  , कर ले काम महान |
जल वन   बिन भुइयाँ , सारी दुनियाँ ,  बने नहीं शमशान ||

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

Saturday, March 16, 2013

पाँच रंग



लाल
रक्त  बहाता  आदमी      , करे  धरा को लाल |
मृत्यु बाँटते फिर रहा,यह कलियुग का काल ||

नीला
गौर वर्ण नीला  हुआ   ,   बाबुल है बेहाल |
बड़े जतन गत वर्ष ही,भेजा था ससुराल ||

पीला
मुखड़ा पीला पड़ गया, आँसू ठहरे गाल |
माँ कैसे  देखे भला   ,  बेटी का कंकाल ||

हरा
हरा-भरा संसार था  , राख कर गई ज्वाल |
हरा रही सुख-प्रेम को, चाँदी की टकसाल ||

गुलाबी
कभी गुलाबी नैन थे ,श्वेत पुतलियाँ आज |
इतराओ मत भूल कर , यौवन धोखेबाज ||


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)