पूर्ण
शून्य है,शून्य ब्रम्ह है
एक अंश
सबको हर्षाये
आधा और
अधूरा होवे,
शायद प्रेम
वही कहलाये
मिट जाये
तन का आकर्षण
मन चाहे बस
त्याग-समर्पण
बंद लोचनों
से दर्शन हो
उर में
तीनों लोक समाये
उधर पुष्प
चुनती प्रिय किंचित
ह्रदय-श्वास
इस ओर है सुरभित
अनजानी
लिपियों को बाँचे
शब्दहीन
गीतों को गाये
पूर्ण
प्रेम कब किसने साधा
राधा-कृष्ण
प्रेम भी आधा
इसीलिये
ढाई आखर के
ढाई ही
पर्याय बनाये .....
अरुण कुमार
निगम
आदित्य नगर, छत्तीसगढ़