Followers

Wednesday, September 7, 2016

मन से उपजे गीत (मधुशाला छंद)

मन से उपजे गीत (मधुशाला छंद)

ह्रदय प्राण मन और शब्द-लय , एक ताल में जब आते 
तब ही बनते छंद सुहाने, जो सबका मन हर्षाते 
तुकबंदी है टूटी टहनी, पुष्प खिला क्या पाएगी 
मन से उपजे गीत-छंद  ही, सबका मन हैं छू पाते ||


अरुण कुमार निगम 
आदित्य नगर, दुर्ग
छत्तीसगढ़ 

Saturday, September 3, 2016

ब्लॉग जगत में दूसरी पारी

मित्रों , 


जीवन की विभिन्न विवशताओं ने लम्बे समय से बाध्य कर रखा था. अतः ब्लॉग जगत में मेरी लम्बे समय से अनुपस्थिति रही. ३१ अगस्त २०१६ को मैं भारतीय स्टेट बैंक में ३६ वर्ष की सेवाएं पूर्ण करते हुए सेवानिवृत्त हुआ हूँ. ब्लॉग जगत में अपनी अपनी दूसरी पारी का शुभारम्भ कर रहा हूँ. आशा है समस्त पुराने मित्रों का स्नेह पहले की ही तरह मुझे प्राप्त होगा. सादर. 


मेरा नया काव्य संग्रह प्रकाशन की प्रक्रिया में है. मुख पृष्ठ से इस पारी की शुरुवात करता हूँ .


अरुण कुमार निगम 

आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)