*दोहा छन्द*`
निर्णय के परिणाम से, हर कोई है स्तब्ध
सहनशीलता सर्वदा, जनता का प्रारब्ध ।
सहनशीलता सर्वदा, जनता का प्रारब्ध ।
जनता ने पी ही लिया, फिर से कड़ुवा घूँट
किस करवट है बैठता, देखें अब के ऊँट ।
किस करवट है बैठता, देखें अब के ऊँट ।
दूषित नीयत से अरुण, पनपा भ्रष्टाचार
आशान्वित होकर सदा, जनता बनी कतार ।
आशान्वित होकर सदा, जनता बनी कतार ।
आकर कर दो राम जी, दुराचार को नष्ट
राम राज की आस में, जनता सहती कष्ट ।
राम राज की आस में, जनता सहती कष्ट ।
विस्फारित आँखें लिए, ताक रहा आतंक
हर कोई जनता बना, क्या राजा क्या रंक ।
हर कोई जनता बना, क्या राजा क्या रंक ।
अरुण कुमार निगम